जाने क्या है माज़ी में
जो धड़कता है,
कोई इन गलियों में
अकेला भटकता है…
मोहब्बत क्या है
पतझड़ या बहार है
बदला नहीं जो सदियों में
वह प्यार है…
कुछ मरासिम हम
आज भी निभाते हैं
सदा तस्व्वुर में
तेरा चेहरा पाते हैं…
जाने क्या है माज़ी में
जो धड़कता है,
कोई इन गलियों में
अकेला भटकता है…
रहते थे जहाँ वह
आज उस आशियाँ पे
बेलों का डेरा है,
कहते थे यह तुम
यह जो तेरा दिल है
वह मेरा है…
जाने वाले क्या
छोड़ के जाते हैं
चाहने वालों के
दिल तोड़ जाते हैं,
आँखों में फिर
तेरे ख़ाब जलते हैं,
नींद में उठकर,
आज भी चलते हैं…
जाने क्या है माज़ी में
जो धड़कता है,
कोई इन गलियों में
अकेला भटकता है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२
One reply on “जाने क्या है माज़ी में”
mohobaat kya hai,patjhad ya bahar,jo nahi badla wo pyar,superb.