जब दर्द के धागे टूटते हैं तो उनमें गाँठ लगाता कौन है
दुश्मनी किसी की क्या मुझसे मुझको सताता कौन है
वह कैसे जान लेता है मेरा हर राज़ उससे कहे बिगैर
किसी को क्या मतलब मेरी बातें उसे जाकर बताता कौन है
बमुश्किल दो ही क़दम चला था मैं तेरे घर की तरफ़
खु़दाया मेरी मंज़िल की राह में काँटे बिछाता कौन है
एक तेरे मुँह फेर लेने से बदल गये मेरे सब रिश्ते
जिसका साथ तुमने छोड़ा उससे फिर निभाता कौन है
वक़्त है आज उनका लोग सिखाते हैं मुझको जीने का ढब
देखिए वक़्त के आइने बिगड़े हुए को बनाता कौन है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’