जब कभी वह शाम मुझे याद आयी
मेरी जाने-बहाराँ तू बहुत याद आयी
माना आज शाम का वह रंग नहीं
और मेरी जान तू भी मेरे संग नहीं
मगर दिलो-ज़हन से हर वक़्त
तेरे ख़ाबो-ख़ाहिश में फ़रियाद आयी
जब कभी वह शाम मुझे याद आयी
मेरी जाने-बहाराँ तू बहुत याद आयी
ढलती गुलाबी शाम मुझसे कहती है
सिर्फ़ एक तू मेरे दिल में रहती है
‘विनय’ जुदा हो तुम बिन कैसे जिये
ये बात उसे समझ बहुत बाद आयी
जब कभी वह शाम मुझे याद आयी
मेरी जाने-बहाराँ तू बहुत याद आयी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २९ अप्रैल २००३
One reply on “जब कभी वह शाम”
bahut kuch kehti, yaadgar sham, sundar kavita.