मुसीबत क्या-क्या न तेरे इश्क़ में आयेगी
आफ़त रोज़ नयी मेरे सर पे उठायेगी
बेक़रार पहले न किया इतना मेरे दिल ने
आज तो लगता है बस साँस उखड़ जायेगी
जिससे पूछता हूँ तेरा पता नहीं देता मुझको
आज़माइशे-वक़्त कितना रुलायेगी
कोई क्या जाने हालत मेरे बीमारिए-दिल की
कुछ आज बिगड़ी है कल और बिगड़ जायेगी
मेरे आँसू भी दर्द से भर उठे जाने-बहार
तेरी जुदाई और मुझे कितना तड़पायेगी
राह तू ही दिखा अपने बंदे को मेरे मालिक
‘नज़र’ की जान शीना के बग़ैर न जायेगी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४