जो ब-वक़्ते-मर्ग तेरी आरज़ू रहे
इससे क्या कि उम्रभर रू-ब-रू रहे
गर न कही उम्रभर दिल की बात
इससे क्या कि आते-जाते गुफ़्तगू रहे
मैं तुम्हें देखूँ तुम मुझे देखो मुड़-मुड़के
न तुझे सुकूँ रहे न मुझे सुकूँ रहे
तुम इशारों में कहो मैं इशारों को पढूँ
दो दिलों को मोहब्बत की जुस्तजू रहे
तुमने दिल मेरा आख़िरश जीत लिया
अब दिल में तेरे लिए नया जुनूँ रहे
ऐसे हालात का बाइस महज़ तुम हो
इससे क्या कि निगाह में खू़ब-रू रहे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’