जो दिल से जाता नहीं है
तू वह गीत है
जो दिल में आकर बसा था
तू वह मीत है
साँसों की सरगम बस तुम ही तुम
लफ़्ज़ों में जब हम बस तुम ही तुम
कहना कितना मुश्किल था
यह समझा न सके
अपने दिल की बात हम
तुम्हें बता न सके
जो दिल से जाता नहीं है
तू वह गीत है
जो दिल में आकर बसा था
तू वह मीत है
प्यार क्या है सनम हमें कब पता था
हमें जब तुम मिले तब पता चला था
अकेले रहना मुमकिन नहीं
यह कह न सके
अपने दिल के जज़्बात हम
तुम्हें जता न सके
जो दिल से जाता नहीं है
तू वह गीत है
जो दिल में आकर बसा था
तू वह मीत है
अब तो ऐसा लगता है मुझको
जैसे फूलों में ख़ुशबू नहीं है
तुम जो नहीं यहाँ पर सनम
जैसे यहाँ पर कुछ भी नहीं है
बेचैन करती हैं यादें दिन-रात
बुझती नहीं हैं साँसें
हर लम्हा सोचता हूँ क्या मैं
करूँ तो क्या करूँ
जो दिल से जाता नहीं है
तू वह गीत है
जो दिल में आकर बसा था
तू वह मीत है
कुछ और अब बाक़ी नहीं
बस मैं हूँ मेरा ख़ाब है
ख़ामोश रहती हैं यह रातें
बस मैं हूँ मेरा साथ है
ज़िन्दगी मेरी तुम बदलकर चले गये
तन्हा कर गये हमें तन्हा कर गये
जो दिल से जाता नहीं है
तू वह गीत है
जो दिल में आकर बसा था
तू वह मीत है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
6 replies on “जो दिल से जाता नहीं है”
जो दिल से जाता नहीं है
तू वह गीत है
जो दिल में आकर बसा था
तू वह मीत है
“waah, waah, very truely said, wonderful”
Regards
Interesting…
@ Seema Ji, I am glad to know that you liked my song.
aap ki yah geet mujhe bahut achhi lagi ap aise hi logo ko geet bhejate rahen aap chahane aap ko sada yad karenge
shivam rai
pune
fantastic, bahut hi achi hai ye gazal…itna pasand aaya ki words nahi hai mere paas
धन्यवाद रोशन जी!