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मेरा गीत

काँच के टुकड़े हैं ख़ाब तुम्हारे

काँच के टुकड़े हैं ख़ाब तुम्हारे
आँखों में चुभ जाते हैं
शाम की रंगत है इनमें
सुबह-सुबह दिख जाते हैं…

इक उन्स उठा है दिल में
इक चाहत-सी जागी है
कहे ज़माना कुछ भी
सौदाई यह दिल बाग़ी है

हल्की-हल्की रोशनाई
आँखों में इक नूर गिरा देती है
पानी पे तेरी परछाईं
चाँद को आईना दिखला देती है

काँच के टुकड़े हैं ख़ाब तुम्हारे
आँखों में चुभ जाते हैं
शाम की रंगत है इनमें
सुबह-सुबह दिख जाते हैं…

इक कलमा बाँध लिया है
इक नग़मा साज़ दिया है
एक ज़माना डूबके आते हैं
इश्क़ में जो लुट जाते हैं

एक तू ही है तू ही
और कोई नहीं है कुछ भी
पलकों के सहारे-
इक ख़ाब रुका रहता है
मिलती हों जिनकी लकीरें
उनके साथ ख़ुदा रहता है

काँच के टुकड़े हैं ख़ाब तुम्हारे
आँखों में चुभ जाते हैं
शाम की रंगत है इनमें
सुबह-सुबह दिख जाते हैं…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

One reply on “काँच के टुकड़े हैं ख़ाब तुम्हारे”

kanch ke tikde hai khabh tumhare chub jate hai,this is beautiful.and the punch line rangabirangi hai,subhah dikh jate hai,fantastic.

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