कैसे मिलूँ तुमसे जो न मिलना चाहो
चला चलूँ अगर साथ चलना चाहो
नहीं कहते हो मुझ से हर बार तुम
करूँ क्या’ जो तुम ख़ुद जलना चाहो
मैं मसख़रा ही सही तुम तो गुल हो
तुमको हँसा दूँ जो तुम खिलना चाहो
देख लो मेरी दीवानगी एक बार तुम
बिखेरो मुझे’ जो तुम संभलना चाहो
शब्दार्थ:
मसख़रा: clown, joker, मज़ाकिया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
7 replies on “कैसे मिलूँ तुमसे जो न मिलना चाहो”
sundar bhav badhai
सुन्दर प्रस्तुति।
sundar kathya…kubsurat….
बहुत ही सुंदर.
धन्यवाद
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
अच्छी अभिव्यक्ति दी भावों की …. होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
Gd morng,
bahut sunder likha hain aapney
Very Nice Post. kaise seekho kavita likhna jo mai seekhna chahoo? 🙂