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मेरी ग़ज़ल

कैसे मिलूँ तुमसे जो न मिलना चाहो

कैसे मिलूँ तुमसे जो न मिलना चाहो
चला चलूँ अगर साथ चलना चाहो

नहीं कहते हो मुझ से हर बार तुम
करूँ क्या’ जो तुम ख़ुद जलना चाहो

मैं मसख़रा ही सही तुम तो गुल हो
तुमको हँसा दूँ जो तुम खिलना चाहो

देख लो मेरी दीवानगी एक बार तुम
बिखेरो मुझे’ जो तुम संभलना चाहो

शब्दार्थ:
मसख़रा: clown, joker, मज़ाकिया


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

7 replies on “कैसे मिलूँ तुमसे जो न मिलना चाहो”

बहुत ही सुंदर.
धन्यवाद

आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है

अच्‍छी अभिव्‍यक्ति दी भावों की …. होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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