वही हैं वह, वहीं हैं वह
वही हैं वह, हाँ-वहीं हैं वह
कल हमसे मिलीं थी जो
हमने जब पूछा था उनसे
वह हँसकर बोलीं थी हाँ
लगा था जैसे लुटा हो जहाँ
गुलशन बने जब गुल खिले
चलते रहे हम इश्क़ तले
मचली हवाएँ दिल में दुआएँ
उनके लिए, उनके लिए…
कल हमसे मिलीं थी जो
तपता रेगिस्तान है प्यासा
उसके दिल में जलती है आशा
बूँदें मिलें, पानी की बूँदें मिलें
सालों पहले मिलीं थी जो
वह न जानें जलते हम भी हैं
रात-दिन इसकी तरह
कि आके हमसे मिलें वह
कल हमसे मिलीं थी जो
करते रहे वह इश्क़ हमसे
और हम उनसे लेकिन
न हम कह पाये कभी
और न वह कह पाये हमसे
कुछ वह हमसे कहें
कुछ वह हमसे कहें
आयें वह, आयें वह
कल हमसे मिलीं थीं जो
वही हैं वह, वही हैं वह
वही हैं वह्, हाँ-वही हैं वह
कल हमसे मिलीं थी जो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९