ख़ाब आँसुओं में फिर घुलेंगे
जब चंद राज़ फिर खुलेंगे
इक ये वचन पूरा कर लें
हम सारे पाप फिर धुलेंगे
किसी के एतक़ाद ने बाँधा है
वो हमें भूले ख़ुद फिर भूलेंगे
पहले उसके लिए जी लें
अपनी जान से फिर खेलेंगे
पलाश को ख़ुश्बू मिल जाये
इस तन्हाई को फिर ढो लेंगे
पहले कहने दो ज़माने को
सुनेंगे सब की फिर बोलेंगे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४