ख़ुदा करे आहो-फ़ुगाँ का तुझपे असर हो
मेरी नज़र तुझ-क़ातिल नज़र हो
जाये यह दिन और फिर यह रात ढले
इक नयी उम्मीद हो इक नयी सहर हो
राहे-इश्क़ में हम इतने भी नाक़ाबिल नहीं
पी जायेंगे हम मय हो कि ज़हर हो
मैं शैदा हूँ तेरा मेरी ख़ुदा से यह दुआ है
ये ज़िन्दगी तेरे इश्क़ की इक लहर हो
काँटे बोये राह में दोस्तों और दुश्मनों ने
कि अब मेरे सर तेरे इश्क़ की मेहर हो
अब तो यही आरज़ू पूरी हो जाये मेरी
मेरी कब्र से तेरी रह-गुज़र हो
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४