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मेरी नज़्म

ख़ुदा ने जब किसी को

ख़ुदा ने जब किसी को
न कहा अपना ख़ुदा
फिर तूने क्यों कहा
ग़ैर को अपना ख़ुदा

यह तो हद ही कर दी तूने,
यह तो हद ही कर दी तूने!

ग़ैर कभी कोई
एहसान नहीं उठाते
वह तो बस
ईमान को क़त्ल करते हैं
वह तेरा हो या ख़ुद उनका

हर क़दम पे इक नया दरवाज़ा
हर क़दम पे इक नयी चौखट
चौखट से टकराकर
बार-बार गिरता हूँ

काश!
इस बार चौखट पे दिए हों…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

2 replies on “ख़ुदा ने जब किसी को”

अच्छा प्रयास है।

हर क़दम पे इक नया दरवाज़ा
हर क़दम पे इक नयी चौखट
चौखट से टकराकर
बार-बार गिरता हूँ

आपका धन्यवाद कि आपने टिप्पणी लिखने का समय निकाला और सरहना की!

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