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मेरा गीत

ख़ुशबू के आइने ने

ख़ुशबू के आइने ने
मेरे चेहरे पर धूप बिछा दी
जो बात भूल गया था
एक बार फिर याद करा दी

वक़्त ने आवाज़ दी
ऐ ज़िन्दगी आज फिर हैराँ हूँ
कल तक मैं क्या था
सोचो तो आज मैं कहाँ हूँ

सूखे हुए लफ़्ज़ हैं
अब नज़्म की बात क्या होगी
बहार के पुरज़ों ने
अब ज़र्द ख़िज़ाँ को विदा दी

तेरा रेशमी उजला
आइने-सा रुख़ न भूल पाऊँगा
मैं गुज़र रहा हूँ
पर बीती गली न लौट पाऊँगा

अब्र गुज़रे सहरा से
वक़्त की रेत उसने भिगा दी
शज़र की प्यास बुझे
किसने उसको मिराज़ दिखा दी


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

4 replies on “ख़ुशबू के आइने ने”

तेरा रेशमी उजला
आइने-सा रुख़ न भूल पाऊँगा
मैं गुज़र रहा हूँ
पर बीती गली न लौट पाऊँगा

maf karan magar kya yahan tera reshami ujala hai ya ujaala hai…….

wese umda rachana hai badhai…..

regards
Arsh

अर्श साहब,

प्रयुक्त शब्द उजला ही है। प्रथम पंक्ति के साथ नीचे की सभी पंक्तियाँ मिलाकर पढ़िए स्पष्ट हो जायेगा।

धन्यवाद!

सूखे हुए लफ्ज़ है अब नज़्म की क्या बात होगी –भाई बहुत जबरजस्त कल्पना की है -बहुत बहुत धन्यबाद

धन्यवाद तो मुझे आपका करना चाहिए कि आप नियमित रचानाएँ पढ़कर कमेंट करते हैं।

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