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मेरी ग़ज़ल

खु़शबु-ए-सुम्बुल

तुम हँसे तो बादे- उम्रे- ख़िज़ाँ शज़र पे गुल आये
अब कहाँ मौसमे-आहो-फ़ुगाँ बाग़ मे बुलबुल गाये

दामने-ज़ीस्त न छोड़ा जाए जब तक वह न कह दे
आना है अगर मौत को मेरे हुज़ूर में बिल्कुल आये

मेरे दर्द को सिवा इतना करो तुम कि दर्द न रहे
इस ज़ोरो-जफ़ा का राज़ भी मोहब्बत पे खुल जाये

अब न रखो ज़ख़्मे-दिल पे तुम मरहम का फाहा
कि शिकन की यह तहरीर भी तेरी पेशानी से धुल जाये

तुम ताअल्लुक़ तोड़ भी लो हम बंदगी से न जाएँगे
सितम इतने करो कि दिल भी आने को आपे में तुल जाये

हम सैरे – गुलशन हों या दस्ते – मुसाफ़िर खु़दाया
‘नज़र’ को चार- सू से मगर खु़शबु- ए- सुम्बुल आये


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

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