तुम हँसे तो बादे- उम्रे- ख़िज़ाँ शज़र पे गुल आये
अब कहाँ मौसमे-आहो-फ़ुगाँ बाग़ मे बुलबुल गाये
दामने-ज़ीस्त न छोड़ा जाए जब तक वह न कह दे
आना है अगर मौत को मेरे हुज़ूर में बिल्कुल आये
मेरे दर्द को सिवा इतना करो तुम कि दर्द न रहे
इस ज़ोरो-जफ़ा का राज़ भी मोहब्बत पे खुल जाये
अब न रखो ज़ख़्मे-दिल पे तुम मरहम का फाहा
कि शिकन की यह तहरीर भी तेरी पेशानी से धुल जाये
तुम ताअल्लुक़ तोड़ भी लो हम बंदगी से न जाएँगे
सितम इतने करो कि दिल भी आने को आपे में तुल जाये
हम सैरे – गुलशन हों या दस्ते – मुसाफ़िर खु़दाया
‘नज़र’ को चार- सू से मगर खु़शबु- ए- सुम्बुल आये
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’