क़िस्मत की लकीरें
मुझे तुझसे दूर रखती हैं
यह नम आँखें
तेरी याद में चाँद तकती हैं
आँखें जब बंद करता हूँ
मैं तेरा चेहरा देखता हूँ
गुलों की तरह
यह साँसों में महकता है
माहताब की तरह
ख़ाबों में दमकता है
भूलता नहीं कुछ भी
सिलसिला चला करता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
2 replies on “क़िस्मत की लकीरें”
kismat ke khel nirale,sundar bhav.
Posted by Ashok Duhan Petwer 09896470222 on September 10, 2009 at 3:55 PM
क़िस्मत की लकीरें
मुझे तुझसे दूर रखती हैं
यह नम आँखें
तेरी याद में चाँद तकती हैं
आँखें जब बंद करता हूँ
VEER GOOD SIR
Ashok Duhan Petwer HARYANA MOB-09896470222
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