ज़िन्दगी से दर्द’ दर्द से ज़िन्दगी मिली है
ज़िन्दगी के वीराने में तन्हाई की धूप खिली है
मैं रेत की तरह बिखरा हुआ हूँ ज़मीन पर
उड़ता जा रहा हूँ उधर’ जिधर की हवा चली है
मैं जानता हूँ उसका चेहरा निक़ाब से ढका है
महज़ परवाने को लुभाने के लिए शम्अ जली है
बदलता है वो रुख़ को चाहो जिसे जान से ज़्यादा
मेरी तो हर सुबह’ दोपहर’ शाम यूँ ही ढली है
आज देखा उसे जिसे कल तक दोस्ती का पास था
आज देखकर उसने मुझे अपनी ज़ुबाँ सीं ली है
किसने पहचाना ‘नज़र’ तुम्हें भूलने के बाद
अब तन्हा जियो तुमको ऐसी ज़िन्दगी भली है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००५
2 replies on “किसने पहचाना ‘नज़र’ तुम्हें भूलने के बाद”
मैं रेत की तरह बिखरा हुआ हूँ ज़मीन पर
उड़ता जा रहा हूँ उधर’ जिधर की हवा चली है
Beautiful lines…..!
thanks, rewa ji!