कोई आता है ज़िन्दगी में, जैसे रोशनी
जज़्बों का शौक़ के बाद क्यों कुछ कमी
उसकी आँखें हमने देखी हैं नीली-नीली
जिनसे मेरे ख़ाबों की दुनिया है उजली
उसने आने से खिलते हैं गुलशन हज़ार
जानता है हर कोई यहाँ जो है तलबगार
लाखों-करोड़ों में उसके जैसा कोई नहीं
वह यार बने मेरा इतना तन्हा वह नहीं
उसे देखते हैं सभी रखते हैं दिल उधार
उड़ें बादलों के टुकड़े आसमाँ में बेशुमार
कोई आता है ज़िन्दगी में, जैसे रोशनी
जज़्बों का शौक़ के बाद क्यों कुछ कमी
मौसम लौटा आया, लौट आयी है बहार
वह सूखे बाग़ीचे हमने देखे हैं गुलज़ार
उसकी आँखें हमने देखी हैं नीली-नीली
जिनसे मेरे ख़ाबों की दुनिया है उजली
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९