कोई तो आये रे
तन्हाइयाँ ले जाये रे
कब से चौराहे पर हूँ,
कोई राह बताये रे
कितनी शामों के
कितने सूरज डूबे
डूबके फिर उतराये
उतराये रे…
कोई तो आये रे
शाख़ों में टाँगा है
चाँद का चिराग़
कोई अब्र क्यों
उसे चुराये रे…
कह दो हवा से
वह उस अब्र को
उड़ाये, उड़ाये रे
कोई तो आये रे
सूनी-सूनी शब है
दर्द की कसक
नब्ज़ बुझाये रे
कोई तो आये रे
जाने किसका ख़्याल
दिल में आये-जाये
दिन-रात मुझे
सताये, सताये रे…
कोई तो आये रे
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२