ज़िन्दगी
उम्र के दरिया में बहते हुए
मँझधार-मँझधार जाने कहाँ
बहती जा रही है…
शायद अपनी हसरतों में मुब्तिला है
और कुछ नहीं उसकी दुनिया में,
बस कुछ चंद हसरतें हैं
हसरतें जाने कब पूरी हों
कब ज़िन्दगी को धीमी मँझधार वाला
कोई आगोश कोई साहिल मिले…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’