कुछ-कुछ होता है सनम
जब-जब तुमसे मिलते हैं
कैसे कहें हम सनम
तुमसे मोहब्बत करते हैं…
दिल डरता है लब सीं रखते हैं
ख़ामोशी से आँखों को पढ़ते हैं
हर आहट पर दिल धड़कता है
यह तुमसे अकीदत करता है
कुछ-कुछ होता है सनम
जब-जब तुमसे मिलते हैं
कैसे कहें हम सनम
तुमसे मोहब्बत करते हैं…
मेरे दिल में हज़ारों अरमान
सुबह-शाम जलते-बुझते हैं
कोई तूफ़ान दिल में उठता है
तेरी जोत पर दिल जलता है
कुछ-कुछ होता है सनम
जब-जब तुमसे मिलते हैं
कैसे कहें हम सनम
तुमसे मोहब्बत करते हैं…
तेरे ख़ाब दिल में रखते हैं
मिलो तुम रब से दुआ करते हैं
दिल यह ज़ुबाँ समझता है
कहते नहीं तुम दिल सुनता है
कुछ-कुछ होता है सनम
जब-जब तुमसे मिलते हैं
कैसे कहें हम सनम
तुमसे मोहब्बत करते हैं…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९
5 replies on “कुछ-कुछ होता है सनम”
बहुत बढिया काव्यात्मक अभिव्यक्ति
दीपक भारतदीप
dil ke arman subha shaam jalte bujhte hai,awesome
@ mehek & दीपक भारतदीप,
oh, i am popular to write this kind of things and i like experiments… well thanks…
”I LOVE U, tomko Bye C.U
hi,
hello, kaho kaisey ho, aap ne to kamal ka likha hai, eske liye bahut -bahut thank you
aur aise hi likhte rahiyga..
O.K ,Bye; C.U