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मेरा गीत

क्या मुझको तुमसे प्यार है

क्या मुझको तुमसे प्यार है
जो तुम ख़ाब में आने लगे
नहीं-नहीं-
ऐसा तो कभी मैंने चाहा नहीं
जो तुम इतना मुझे तड़पाने लगे

मुझको एक डर था दिल में एक शक़ था
मैं कहीं खो न जाऊँ तेरी
इन नशीली आँखों में

एक मौसम भी आया हुआ है शाखों पर…
मैं कहीं बेल बनकर लिपट न जाऊँ
इन रसीली शाख़ों से

नहीं-नहीं-
ऐसा तो कभी मैंने चाहा नहीं
जो तुम इतना मुझे उलझाने लगे

ख़ाब में जो तेरा हाथ थाम लिया था मैंने
उसका वह अजब एहसास
अब तक दिल से गया नहीं

बहुत थम-थम के गुज़रा वह लम्हा
मैंने चाहा तो बहुत मगर
वह पल, पल में ख़त्म हुआ नहीं

क्या मुझको तुमसे प्यार है
जो तुम ख़ाब में आने लगे
नहीं-नहीं-
ऐसा मैंने कभी चाहा नहीं
जो तुम इतना मुझे लुभाने लगे


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

4 replies on “क्या मुझको तुमसे प्यार है”

ati sundar,
bel wali lines sabse anokhi,bahut acchhi.
kya khwabo mein aana bhi akharne laga ab
unki yaad to dil mein basti hai.

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