क्या वादा करूँ तुझसे सितारे तोड़ लाऊँगा
मेरी जान ऐसे वादों का रिवाज़ भी पुराना हुआ
लोग अपने महबूब को चाँद बताते थे
मेरी जान आज तो यह अंदाज़ भी पुराना हुआ
यह रात उलझी हुई है तेरी लटों में ओ जानम
आग की रेशमी लपक-सा तेरा उजला चेहरा है
सुर्ख़ तेरे लब हैं जैसे दहकते हुए अंगारे
छलकते पैमाने जैसी आँखों में गुलाबी कोहरा है
तंग पोशाक में उभरे हुए जिस्म की कशिश
तेरा दीवाना आज ख़ुद तेरे हुस्न का शिकार है
गोरे गालों पर काला तिल उफ़ क़ायमत हो
मैं सैद तू सैय्याद यह रिश्ता भी निभाना हुआ
अदाएँ ख़ूब हैं मेरे जल्वागर जाँ-निसार की
वह हर एक रंग में घुलता है निखरता है
जब भी खिलती है उसके चेहरे पर ख़ुशी
वह एक हसीं ख़ाब में भिगोया हुआ लगता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
5 replies on “क्या वादा करूँ तुझसे”
tuje ek harf me kese likh du muje ye rachana padhani hai………………..
Arsh
@ अर्श जी, साइडबार में गीली स्याही नाम का एक सेक्शन है, उसमें नयी पोस्टों के लिन्क रहते हैं, कृपया उसका प्रयोग करें! या फिर जो रचना पढ़नी हो उसमें निहित शब्द साइडबार में दी गयी सर्चबार में सर्च कर लें!
baada phir baada hai main zehar bhi pee jaaoon qateel
shart yeh hai koi baahon mein sambhaale mujhko….
http://www.youtube.com/watch?v=URqYx3ZJNTA
qateel shifaai kee bahut hii khoobsoorat ghazal hi, shukriyaa!
*baada = sharaab
Really? I always thought it was vaada as in promise !!!! Thanx for clarifying !