लो! यह दिन भी क़रीब आ गये जानम
जब मैं तुम्हारे लिए सरे-बाम खड़ा होता था
इस बरस होली के रंग रास नहीं आयेंगे…
सरे-बाम= छत के ऊपर, छज्जे पर, on the roof
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
लो! यह दिन भी क़रीब आ गये जानम
जब मैं तुम्हारे लिए सरे-बाम खड़ा होता था
इस बरस होली के रंग रास नहीं आयेंगे…
सरे-बाम= छत के ऊपर, छज्जे पर, on the roof
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३