हवा में इक ताज़ा खु़शबू है
कुछ पुरानी यादों की,
आज सारी रात जागूँगा
सारी रात याद करूँगा तुम्हें
इस उम्मीद पर कि शायद
हिचकी के वक़्त कुछ नामों के बीच
मेरा भूला हुआ नाम
तुम्हारी ज़ुबाँ से तुम्हारे लबों पर आ जाए
शायद इसी बहाने
तुम मुझे याद कर लो
शायद यूँ कभी याद किया न हो…
तुमने मुझे
अगर नहीं किया तो क्यों
मैं तुम्हारी साँसों का कभी एक क़तरा…
रह चुका हूँ
साँस जिससे जिस्म में जान है
हाँ वही हूँ मैं
जिसकी तुम्हें ज़रूरत तो है
मगर उसका एहसास नहीं…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’