मैं बहुत तन्हा रहा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
साँसों में हर ग़म पिरोया, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
सब कुछ खोया कुछ न पाया इस दुनिया में
पल-पल मैं तड़पा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
आसमाँ ओढ़े बैठी रही तेरे लिए इक सदी
न रोशनी न चन्द्रमा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
बहती रही तेरे ही जानिब, ज़मीं इश्क़ में
न’असरकार रही दुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
हम खिंचे चले जाते हैं किस ओर क्या पता
हर तरफ़ नया चेहरा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
ऊदी हुई आँखों में नम है एक पुराना मौसम
हर साँस में लिपटा हुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
था बहुत सख़्तजान तेरा यह उम्मीदवार
‘नज़र’ नाचार हुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
9 replies on “मैं बहुत तन्हा रहा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी”
हम खिंचे चले जाते हैं किस ओर क्या पता
हर तरफ़ नया चेहरा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
बहोत ही उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने बहोत खूब..
अगर बिगैर क्या सही है शब्द ..????
बहती रही तेरे ही जानिब, ज़मीं इश्क़ में
न’असरकार रही दुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
bahut khuub likha hai!
बहुत बढीया कवीता
“सब कूछ खोया कूछ ना पाया ईस दूनीया से”
वाह बहुत अच्छा लीखे हैं
ऊदी हुई आँखों में नम है एक पुराना मौसम
हर साँस में लिपटा हुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
था बहुत सख़्तजान तेरा यह उम्मीदवार
‘नज़र’ नाचार हुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
waah kya baat hai,sundar
bahut achha likha hai
bahot khub vinay bhai……umda lekhan
Waah ! bahut sundar gazal hai.
हम खिंचे चले जाते हैं किस ओर क्या पता
हर तरफ़ नया चेहरा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
ऊदी हुई आँखों में नम है एक पुराना मौसम
हर साँस में लिपटा हुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
” ek jordaar sach jindgi ka, taire bgair, fir vhee shikayat jindgee se fir vhee dard jindgee ka, accha lga pdh kr..”
Regards
आप सभी पाठकों एवं मित्रों का तहे-दिल से शुक्रिया!
@अर्श साहब होता यह है कि कभी-कभी flow बनाये रखने के लिए कश्ती ‘किश्ती’, किनारा ‘कनारा’ फ़िज़ाँ ‘फ़ज़ाँ’ आदि ऐसे बदलाव हो जाते हैं सो बगैर के लिए यहाँ ‘बिगैर’ प्रयोग कर लिया गया है…
– धन्यवाद