मैं हूँ हस्ति-ए-नाचीज़’ मुझसे किसी को चाह नहीं
मैं हूँ शिगाफ़े-शीशा’ मुझसे किसी को राह नहीं
मैं आया हूँ जाने किसलिए इस हसीन दुनिया में
किसी की आँखों में मेरे लिए प्यार की निगाह नहीं
मैं हूँ अपने दर्दो-आहो-फ़ुगाँ की आप सदा
शायद इस गुमनाम रात की कोई सुबह नहीं
कोई क्या जाने तन्हाई के साग़र’ हमसे पूछो
कि अब मेरे इस दिल में और ख़ाली जगह नहीं
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
4 replies on “मैं हूँ हस्ति-ए-नाचीज़”
मैं हूँ अपने दर्दो-आहो-फ़ुगाँ की आप सदा
शायद इस गुमनाम रात की कोई सुबह नहीं
वाह तन्हाई और चाहत की भावपूर्ण अभिव्यक्ति
Regards
बहोत खूब कही आपने यहाँ भी बेहद सुंदर अभिब्यक्ति….
अर्श
कोई क्या जाने तन्हाई के साग़र’ हमसे पूछो
कि अब मेरे इस दिल में और ख़ाली जगह नहीं
बहुत सुंदर, सभी शेर एक से बढ कर एक है
धन्यवाद
आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है