तुम्हें देखता हूँ तो
तुम्हारी मासूम हँसी से यूँ लगता है कि
तुम मुझे चाहती हो
इन चंद लम्हों में मुझे
यह महसूस होता है शायद
तुम मेरे लिए बनी हो
तुम्हारे रूप का जादू मुझे
तुम्हारी तरफ़ खींचने लगता है
दुनिया थम-सी जाती है
मन बहकने लगता है
जिस्म की सौंधी मिट्टी महक उठती है
तुम्हारी खु़श्बू के साथ…
तुम्हारी अदा तुम्हारा तस्व्वुर
मेरे मन से जाता ही नहीं
मैं खु़द को दो बाँहों में भरकर
बैठा रहता हूँ देर तलक
तुम्हारी याद दिल में पाज़ेब छमकाती रहती है…
तुम्हारा नाम चाँदनी है ना!
मुझे अपनी बाँहों में भर लो तुम
यह उदासी के अँधेरे छँटते नहीं अब…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४