मैं मर जाऊँ तो
अपनी हद से गुज़र जाऊँ तो
क्या तुम जी सकोगी, बोलो…!
सीने जो एक दिल है
इसमें तेरा ही प्यार है
मेरे प्यार को भुला सकोगी, बोलो!
आँखों में सपने तेरे जाते नहीं
और यह चैन दिल को पहुँचाते नहीं
मुझको दीवाना कर छोड़ा है तुमने
और तुम मुझको आज़माते नहीं
मैं मर जाऊँ तो
अपनी हद से गुज़र जाऊँ तो
क्या तुम जी सकोगी, बोलो…!
आँसुओं से प्यास बुझती नहीं है
क्या तेरी मरज़ी यही है
क्या मुझको यूँ ही तड़पाती रहोगी
यह क्यों और कितना सही है?
सीने जो एक दिल है
इसमें तेरा ही प्यार है
मेरे प्यार को भुला सकोगी, बोलो!
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
One reply on “मैं मर जाऊँ तो”
good poem…