दीवाली का दिन और मैं फिर उदास हूँ
दूर सही तेरी यादों के आस-पास हूँ
एक वो माज़ी की शाम दिल से जाती नहीं
जैसे मैं इक अधबुना एहसास हूँ
अब वो दिए कहाँ – कहाँ वो रोशनी
जो बुझ गयी मन ही मन मैं वही आस हूँ
साँस लेते ही आरज़ू का दम घुट गया
खु़द से दूर रहकर तुझ पास हूँ
बहुत चाहा निकल जाती दम के साथ
मैं दिल के टुकड़ों में दबी एक यास हूँ
‘नज़र’ मत पियो इन आँसुओं को तुम
तेरी हालत देखकर मैं बद्-हवास हूँ
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’