जुज़ तेरे न किसी को देखा गया
तुमको सिर्फ़ तुमको चाहा गया
मुहब्बत का मंदिर है दिल
जिसकी देवी तुमको बनाया गया
गर टूटना ही था दिल को मेरे
क्यों फिर साँसों में पिरोया गया
यूँ मरे हम तेरे इश्क़ में बेमौत
अपना जनाज़ा आप उठाया गया
सीने पर बोझ लिए फिरते रहे
दर्द यह ऐसे झुठलाया गया
तेरी चाहत को ख़ता सबने कहा
मुझसे न इक भी समझाया गया
सज़ा इस प्यार की तुम्हीं दो
क्यों दिल को तुमसे लगाया गया
एहसान ‘नज़र’ पे कर दो तुम
मुझसे तो न तुमको भुलाया गया
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’