मत करो तज़किरे मेरी मोहब्बत के
दिन फिर गये तेरी मेरी सोहबत के
दिले-ज़ोफ़ में वह हौसला अब कहाँ
कैसे बिताऊँगा दिन तुमसे फ़ुर्क़त के
ख़ुद ख़ुदा भी आ जाये तो मैं ना कहूँगा
न चाहिए अब दिन यह जन्नत के
मेरी दुआओं का असर फ़ीका न जाये ख़ुदा
मिला दे तुमसे दिन आयें क़ुर्बत के
नज़र है तुमको यह जान भी मेरी
तुम आओ दिन आयें मेरी बरक़त के
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४