मतलब से ही जनम लेता है कोई रिश्ता
मतलब से ही मिट जाता है वह रिश्ता
तख़लीक़ के इस भँवर में तकलीफ़ है बहुत
सँभलकर बुन जब भी बुन नया रिश्ता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
मतलब से ही जनम लेता है कोई रिश्ता
मतलब से ही मिट जाता है वह रिश्ता
तख़लीक़ के इस भँवर में तकलीफ़ है बहुत
सँभलकर बुन जब भी बुन नया रिश्ता
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००३
6 replies on “मतलब से ही जनम लेता है कोई रिश्ता”
तख़लीक़ के इस भँवर में तकलीफ़ है बहुत
सँभलकर बुन जब भी बुन नया रिश्ता
gahri baat kah gaye …
dr. anurag, thanks
bahut achchhi rachna!
so is beautiful ghazal thank you
monu rajawat
beautiful…!
This reminded me of Ahmed Faraz (again)
Dhhondh ujade hue logon mein wafa ke moti
Yeh khazane tujhe mumkin hain kharabon mein milein….
thanks again all of you poetry lovers.