मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी
जो दुआ में तू मुझे माँग पाये कभी
टूट चुके हैं मेरी तमन्ना के दोश
तू ख़ुद संभाला देने को आये कभी
कबसे गया है न आया आज तक
मेरी आरज़ू तुझे खींच लाये कभी
ख़ुदाया मैं भटक रहा हूँ सहराँ में
कोई इस तस्कीं को मिटाये कभी
ग़मगीन शाम है और उदास हम
क्यों गुफ़्तगू का मौक़ा आये कभी
हमसे उल्फ़त किये बनती नहीं
मोहब्बत राहे-जुस्तजू पाये कभी
ख़स्ता हाल है दिल बहुत तेरे लिए
तुझे मजमूँ यह समझ आये कभी
तस्वीर मुझसे बात करती नहीं
तेरा यह दीवाना सुकून पाये कभी
तेरी कशिश भरी एक नज़र इधर
दिल पर अपना जादू चलाये कभी
तुम न जानो मेरे प्यार के बारे में
और ख़ुशबू तेरा पयाम लाये कभी
पहली नज़र से जो हसरत है मुझे
काश ख़ूबरू उसे समझ पाये कभी
दोश : कंधा, shoulder | मजमूँ : विषय, subject | ख़ूबरू : सुन्दर चेहरे वाला, beautiful
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
7 replies on “मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी”
अक्ल तय करती है लम्हों का सफर सदियों में।
इश्क तय करता है लम्हो में जमाने कितने।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
ख़ुदाया मैं भटक रहा हूँ सहराँ में
कोई इस तस्कीं को मिटाये कभी
ग़मगीन शाम है और उदास हम
क्यों गुफ़्तगू का मौक़ा आये कभी
हमसे उल्फ़त किये बनती नहीं
मोहब्बत राहे-जुस्तजू पाये कभी
ख़स्ता हाल है दिल बहुत तेरे लिए
तुझे मजमूँ यह समझ आये कभी
bahut hi badiya badhai.
बहुत अच्छे दोस्त !
आप सभी को ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया अदा कर रहा हूँ!
इस बहुत ही शानदार ग़ज़ल के बहुत बहुत बधाई “नज़र” भाई आपको. बेहतरीन रचना बन पडी़ है.
Bahut khoobsoorat…
kabhi sonchti hoon tujhe bhool jaoon main
ya phir aisa ho ki tujhe bahut yaad aaoon main
khwab-e-tabassum tera chah larzaaye jabhi
dil kahe hai tere shahr ko chhood jaaon main….
aap ki website pe aake (and its never happened before!) mujhe extempore kavita likhne ki prerna milti hai…!!!
Isn’t it amazing?
Yea, it’s great to hear that I can touch a woman’s soul and then she start writing her feelings of heart on piece of papers.