Categories
ख़त/पयाम

मेरे दिलसिताँ

मेरे दिलसिताँ,

तुम्हें देखकर मुझे पहली बार यूँ लगा था कि मेरी ज़िन्दगी मेरे सामने खड़ी है| मेरे बदन में साँस पहले भी थी मगर मुझे उसका एहसास नहीं था| तुम्हें देखकर मेरी धड़कनें जो रवाँ हुईं तो मैंने जाना कि आज तक मैं साँस क्यों ले रहा था| शायद वह तुम्हीं हो, शायद क्यों हाँ वह तुम्हीं हो जिसने मुझे साँस लेने की किसी अपने के लिए जीने की वजह दी है| तुम मेरी ज़िन्दगी हो और मेरी अपनी भी, मेरे मन में रह-रहकर यही ख़्याल आता रहता है| इतने दिन मैंने दिल को बहुत समझाया, बहुत मनाया, लेकिन यह दिल मेरी सुनता कब है| तुम्हें भूलने की कोशिश मैंने बहुत की मगर तुम मुझे याद आती रही, हर पल याद आती रही| हर एक की ज़िन्दगी में कोई न कोई होता है जिसे वह दिल के सबसे क़रीब महसूस करता है, मेरे लिए वह शख़्स तुम ही हो| मुझे यह नहीं पता कि मैं तुम्हें कैसा लगता हूँ मगर मुझे यह मालूम है कि मैं इतना अच्छा नहीं कि मुझे कोई पहली बार देखते ही पसन्द कर ले| जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा और देखता ही रहा तो जाने तुमने मेरे बारे में क्या सोचा हो कि मैं किस तरह का लड़का हूँ| सच मानो मैंने तुम्हें यह सब परेशाँ करने के लिए नहीं किया था| मैं तो बस तुमसे अपने जज़्बात बयाँ करने का एक मौक़ा चाहता था, जो कि तुमने मुझे इतनी कोशिशों में इक बार भी नहीं दिया और दूर से देखकर मुझपे हँसते रहे| मैं तुम्हारी हँसी का क्या मतलब लूँ, तुम ही  कहो| मैं यह सब बातें इक ख़त में लिखकर इसलिए दे रहा हूँ कि तुम मेरे दिल के हालात समझ सको, मैं तुम्हें यह हालात समझा सकूँ| मेरे मन में तुम्हें लेकर कुछ भी ग़लत नहीं है जो है सो मोहब्ब्त है| अब यह तुम्हारी मर्ज़ी है कि तुम मुझे ठुकरा दो या अपना लो| मगर यह मदाम इक सच ही रहेगा कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ और करता रहूँगा|

तुम्हारा सिर्फ़ तुम्हारा


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

4 replies on “मेरे दिलसिताँ”

खिले हैं गुंचे जो रोई है रातभर शबनम
हँसी नहीं है हसीनों का मुस्करा जाना

Leave a Reply to Brijmohan shrivastava Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *