मेरी आँखों में परछाईं-सी चलती हो
धक-धक दिल में लहू बहता है
उसकी आवाज़ में तुम बसती हो,
मेरी आँखों में परछाईं-सी चलती हो…
पत्ते-पत्ते पर बारिश की बूँदों-सी लगती हो
तुमको सीने में अपना दिल बना लूँ
इतना मुझको भाती हो,
मेरी आँखों में परछाईं-सी चलती हो…
अम्बर में बादलों का साया चाँद पे गिरता हो
ऐसे तुम अपने चाँद से चेहरे पर
अपनी ज़ुल्फ़ें गिराती हो,
मेरी आँखों में परछाईं-सी चलती हो…
रोज़ मेरे ख़ाबों में सिर्फ़ तुम ही नज़र आती हो
दिल में दर्द सुलगते हैं
तुम इतना मुझको तरसाती हो,
मेरी आँखों में परछाईं-सी चलती हो…
ख़ुशबू हो तुम इन हवाओं में बहती हो
तुम मेरी चाहत की तस्वीर हो
हाथों की लकीरों में बनती हो,
मेरी आँखों में परछाईं-सी चलती हो…
मेरे जिस्म के क़तरे-क़तरे में रहती हो
ये हवाएँ जहाँ भी ले जायें मुझको
मुझे हर जगह सिर्फ़ तुम नज़र आती हो
मेरी आँखों में परछाईं-सी चलती हो…
लहू बन के मेरे जिस्म में बहती हो
मुझसे जुदा होकर भी तुम
मेरी आँखों में ख़ाब जैसे बसती हो,
मेरी आँखों में परछाईं-सी चलती हो…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२