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मेरा गीत

मेरी आँखों में तुम बसे हो

मेरी आँखों में तुम बसे हो
तुम्हारे बिना मैं अकेला रहता हूँ
तुम कब आ रहे हो
मुझको बताओ, तुम कब आ रहे हो
मैं तुम्हारे इंतज़ार में हूँ…(२)

रोज़ सुबह जब सूरज चमकता है
मैं अपनी लकीरें पढ़ता हूँ
यह सच है कि आसमान नीला है
और यहाँ पर कोई भी बादल नहीं
पर मैं तुम्हारा नाम पुकरता हूँ…

सोफ़िया सोफ़िया सोफ़िया…

रोज़ सूरज की किरणों में
जीवन के अजीब रास्तों में
मेरे दिल की गहराइयों में
मेरे दर्द की पुकार में
मैं तुम्हारी ज़रूरत महसूस करता हूँ
यह तुम ही हो, जिससे प्यार करता हूँ…

सोफ़िया सोफ़िया सोफ़िया…

मेरी आँखों में तुम बसे हो
तुम्हारे बिना मैं अकेला रहता हूँ
तुम कब आ रहे हो
मुझको बताओ, तुम कब आ रहे हो
मैं तुम्हारे इंतज़ार में हूँ…(२)

इस प्यार ने मुझको बहुत दर्द दिया है
पर मैंने इसे बार-बार पाना चाहा है
मैं जानता हूँ कितने ही आशिक़ मिट गये
पर मैंने सदा इनसे ऊँचा उठना चाहा है

इस प्यार के खेल में, ओ मेरी सोफ़िया
इस प्यार के खेल में…
मैं जब भी तुम्हारा नाम पुकराता हूँ
दिल बेइन्तहाँ दर्द महसूस करता हूँ…

सोफ़िया सोफ़िया सोफ़िया…

मेरी आँखों में तुम बसे हो
तुम्हारे बिना मैं अकेला रहता हूँ
तुम कब आ रहे हो
मुझको बताओ, तुम कब आ रहे हो
मैं तुम्हारे इंतज़ार में हूँ…(२)


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

One reply on “मेरी आँखों में तुम बसे हो”

pyar hua hai ‘nazar’ ko,so dil se aawaz aayi,sofiya ab aa bhi ja sajni,badal ne li angadai,inatazaar hai tera,kahi phut pade na rulai,sofiya aa bhi ja. this is lovely lovely one best from u.

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