मेरी हर नज़र बेक़रार’ और रूह बेताब है,
लबों को भी न तस्लीम एक बूँद आब है
रोज़-रोज़ की मुश्किली, यही वह अज़ाब है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
मेरी हर नज़र बेक़रार’ और रूह बेताब है,
लबों को भी न तस्लीम एक बूँद आब है
रोज़-रोज़ की मुश्किली, यही वह अज़ाब है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
4 replies on “मेरी हर नज़र”
aacha likha hai.likhate rhe.
bahut khub
sad-shukr, aap donon ko!
wonderful…………….