मेरी मोहब्बत को समझते हो तुम ग़लत, ग़लत नहीं है
तुमको चाहा है मैंने अगर इसमें कुछ ग़लत नहीं है
दिखा दो तुम कोई अपना-सा इस ज़माने में मुझको
मैं अगर फिर चाह लूँ उसको इसमें कुछ ग़लत नहीं है
आँखों को मेरी सुकून आया है तेरी हसीन सूरत देखकर
किसी चेहरे से सुकूनो-सबात पाना कुछ ग़लत नहीं है
मैं ने अगर देखा है तेरी आँखों में तो तूने भी देखा है
मोहब्बत की नज़र से किसी को देखना कुछ ग़लत नहीं है
डरते हो क्या तुम अपने-आप से या फिर जानकर किया सब
पहले प्यार में दिल का उलझ जाना कुछ ग़लत नहीं है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४
9 replies on “मेरी मोहब्बत को समझते हो तुम ग़लत”
मैं ने अगर देखा है तेरी आँखों में तो तूने भी देखा है
मोहब्बत की नज़र से किसी को देखना कुछ ग़लत नहीं है
” sach hi to hai..”
regards
आपके ब्लाग पर तफरीह करते हुए मजा आया। कुछ सवाल भी उठे पर वो बाद में।
शुक्रिया
आँखों को मेरी सुकून आया है तेरी हसीन सूरत देखकर
किसी चेहरे से सुकूनो-सबात पाना कुछ ग़लत नहीं है
मैं ने अगर देखा है तेरी आँखों में तो तूने भी देखा है
मोहब्बत की नज़र से किसी को देखना कुछ ग़लत नहीं है
बहुत खूब लिखा है।
Hello vinay ji,
आँखों को मेरी सुकून आया है तेरी हसीन सूरत देखकर
किसी चेहरे से सुकूनो-सबात पाना कुछ ग़लत नहीं है
Bahut khub andajey baaya hai aap ke. Dil ke gehraiyo se likhtey hain aap.
KUCH BHI GALAT NAHI HAI MERE DOST.BAHOT HI BADHIYA BHAV… DHERO BADHAI AAPKO..
ARSH
दिखा दो तुम कोई अपना-सा इस ज़माने में मुझको
मैं अगर फिर चाह लूँ उसको इसमें कुछ ग़लत नहीं है
बहुत ही सुंदर
धन्यवाद
आप सभी का तहे-दिल से शुक्र गुज़ार हूँ!
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Hello Vinay ji,
Aap ne apni photo q hata di plz fir laga de.
कहाँ से कौन सी फोटो से हटा दी? कुछ समझ नहीं आया!