मेरी राह के मुसाफ़िर तू कहाँ खो गया है
जबसे तुझे देखा दिल बेग़ाना हो गया है
मेरी राह के मुसाफ़िर तू कहाँ खो गया है
कब आयेगा तू इन राहों पर मुझको बता
यह दीवाना दिल तेरा हुआ मुझे न सता
मेरी राह के मुसाफ़िर तू कहाँ खो गया है
सूनी-सूनी राहों का इन्तिज़ार बढ़ गया है
आया था कोई तूफ़ाँ दिल से गुज़र गया है
मेरी राह के मुसाफ़िर तू कहाँ खो गया है
है नहीं कोई रास्ता पास तुझसे मिलने का
है नहीं कोई सबब इस तरह छिपने का
मेरी राह के मुसाफ़िर तू कहाँ खो गया है
जबसे तुझे देखा दिल बेग़ाना हो गया है
आया था कोई तूफ़ाँ दिल से गुज़र गया है
मेरी राह के मुसाफ़िर तू कहाँ खो गया है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९