ना जीने को जी करता है
ना मरने को जी करता है
तू नहीं है जो साथ मेरे
साथ रहने को जी करता है
खो गया हूँ तन्हाइयों में कहीं
न कोई शाद है न दर्द है कहीं
बिछायी-बिछायी काँटों की तह है
ख़ुद को पिरोने को जी करता है
यह दिन के उजाले ख़ारे हैं
धीरे-धीरे यादों में गुज़ारे हैं
रात मुट्ठी में रेत-सी है
रेत भिगोने को जी करता है
ना जीने को जी करता है
ना मरने को जी करता है
अफ़साने में तू मेरा प्यार है
चाहत में तेरी मेरा किरदार है
तू रूठी जो झूठी-मूठी बहाने से
तुझको मनाने को जी करता है
यह सुबह जो थक जाती है
दिन के काँधे पर शाम आती है
मैं शाम के साथ बैठा रहूँ तो
प्यार तेरा पाने को जी करता है
तू नहीं है जो साथ मेरे
साथ रहने को जी करता है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २९ अप्रैल २००३