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'सौदा' का सुखन

नै बुलबुले-चमन न गुले-नौदमीदा हूँ

नै१ बुलबुले-चमन न गुले-नौदमीदा२ हूँ
मैं मौसमे-बहार में शाख़े-बरीदा३ हूँ

गिरियाँ न शक्ले-शीशा व ख़ंदा न तर्ज़े-जाम४
इस मैकदे के बीच अबस५ आफ़रीदा६ हूँ

तू आपसे७ ज़बाँज़दे-आलम८ है वरना मैं
इक हर्फ़े-आरज़ू९ सो ब-लब१० नारसीदा११ हूँ

कोई जो पूछता हो ये किस पर है दादख़्वाह१२
जूँ-गुल हज़ार जा से गरेबाँ-दरीदा हूँ१३

तेग़े-निगाहे-चश्म१४ का तेरे नहीं हरीफ़१५
ज़ालिम, मैं क़तर-ए-मिज़ए-ख़ूँचकीदा१६ हूँ

मैं क्या कहूँ कि कौन हूँ ‘सौदा’, बक़ौल दर्द
जो कुछ कि हूँ सो हूँ, ग़रज़ आफ़त-रसीदा१७ हूँ

शब्दार्थ:
१. न तो, २. नया खिला फूल, ३. टूटी शाख़, ४. न शीशे की तरह से रो रहा हूँ और न जाम की तरह से हँस रहा हूँ, ५. व्यर्थ ही, ६. लाया गया, ७. स्वयं ही, ८. दुनिया की ज़बान पर चढ़ा हुआ, ९. आरज़ू का शब्द, १०. होंटो पर, ११. पहुँच से वंचित, १३. दाद चाहनेवाला, १४. फूल की तरह हज़ार जगह से मेरा गरेबान फटा हुआ है, १४. निगाहों की तलवार, १५. प्रतिद्वंदी, १६. ख़ून रो रही पलकों पर टिका हुआ क़तरा, १७. आफ़त में फँसा हुआ


शायिर: मिर्ज़ा रफ़ी ‘सौदा’

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

11 replies on “नै बुलबुले-चमन न गुले-नौदमीदा हूँ”

Good morng. vinay ji,

bahut sundar rachna padwaii aapny. urdu ka naaye sabdo se bhi rubroo karwany ke liye sukriya. hindi mein translate karny ke baad hi puri gazal samjh aati hain. sundar rachna

मेरे ब्लॉग पर टिप्पणि कर के हौसला बढ़ाने के लिये आपका धन्यवाद, आपकी कुछ रचनाऎं पढीं, अच्छी लगीं ।
सादर
स्याह !!!

तारीफ नहीं, केवल कमेन्ट दे रहा हूँ. इस कमेन्ट से यदि ठेस पहुंचे तो डिलीट कर दीजियेगा.
दरअसल, गजल की शक्ल में जो आपने जो पोस्ट किया है वो गजलनुमा होते हुए भी गजल नहीं है. आप लखनऊ जैसे शहर में है, वहां गजलकार, समर्थ गजलकारों की बड़ी तादाद है. किसी से थोड़ी ट्रेनिंग, थोड़ी सलाह ले लें,आप में प्रतिभा है, बस थोड़ी तराश की जरूरत है.
दुसरे, इतनी लम्बी रचना से बचने की जरूरत है. कम लिखे, ठोस लिखें. मेरे कमेन्ट से हतोत्साहित होने की आवश्यकता नहीं, मेरे जैसे यूंही बकते रहते हैं.

आपको मेरा नमस्कार,
आप शायद “नम हैं आज तक यादों के सूखे पत्ते” की बात कर रहे हैं और आपकी टिप्पणी मुझे ‘नै बुलबुले-चमन न गुले-नौदमीदा हूँ” पर प्राप्त हुई है। मैं उम्र में आपसे बहुत छोटा सिर्फ़ 25 वर्ष का थोड़ा टेढ़ा सोचता हूँ इसके लिए मैं शुरु में ही आपसे क्षमा माँगता हूँ। अब आप मेरा उत्तर पढ़ें।

आपकी प्रतिक्रिया ही प्रेम है। मैं कभी अपनी किसी रचना को ग़ज़ल घोषित नहीं करता हूँ। यह मेरी अपनी विधा है ‘मेरी ग़ज़ल’ जिसमें कुछ आपके लिए अजीब नियम हो सकते हैं। मैं ख़ुद कुछ न तो लिखता हूँ न लिखने की कोशिश करता हूँ जो समय ने लिखवाया सो मैंने लिख लिया है। जिस कृति की आप कर रहे है वह 2004 में लिखी गयी है अब आप स्वयं ही सोच सकते हैं उस उम्र में मुझको क्या आता होगा। आपको अगर इससे दुख होता है तो मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ। हाँ एक काम है जो आप कर सकते है, वो मेरी रहनुमाई। मुझे आपके बारे में ज़्यादा कुछ नहीं पता है। हो सकता है आपको मेरी बातें सनक से भरी या उत्तेजक लग सकती हैं लेकिन सच मानिए दिल की बात लिख रहा हूँ। जहाँ तक लम्बी ग़ज़ल से लिखने की बात है सो इस पर आपके ख़्याल दूसरे बड़े शाइरों से मेल खाते हैं, पर मेरे विचार से ग़ज़ल का अर्थ है मेहबूब से बातें करना और आप मेहबूब से दो शब्द बात करें या पूरा दिन इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, बस बात दिल छूने वाली होनी चाहिए।

आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ
आपका विनय

बस लिखते रहें… हिन्दू – उर्दू का सफ़र जारी रखे…
हम आते जाते रहेंगे..

-सुलभ जायसवाल सतरंगी

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