नैना कारे कजरारे
तिरछे पड़ें तो
जियरा पे लागें
आरी-कटारी से…
गोरी-गोरी बैय्याँ
चाँदनी से अंग धुला
जो मोह मन लागा
कैसे बिसारूँ रे…
बरखा अँधियारी-से छाये
एक रुत-से सुहाये
मेरे मुख पे लागे
केश कारे-घुँघरारे-से
का से करूँ तेरा मेल
कोई न तेरे जैसा
न दूँ दिल दूजे को
कौन तुझ-सा रे
जिया जराये
बैरी सताये
मन का भेद छुपाये
एहसान जताये
रात्रि चंदा देखूँ
देखूँ तेरा मुख
चंदा देखे तुझे
लाज खाये, जाये लुक
बेला कढ़े केश
महकत रात रानी
दाब-दाब पाँव चले
प्रेम सियानी
घूँघट ओढ़ चले
तबहुँ दमकत मुख चंद्र-सा
दीपा कहूँ तुझे
या बुलाऊँ चंद्रलेखा
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००२
One reply on “नैना कारे कजरारे”
beautiful,
tore naina kajrare,gori dil mein katari utare.