नित उड़ता हूँ तेरी कजरारी अँखियों में
मैं रंग-बिरंगे सपनों की छतरी लेके
साँवले का मन लुभाके, बिजली गिराके
राधा चली कहाँ ऐसे गगरी सँभाले
इठलाती है बल खाती है जिया जलाती है
राधा काहे साँवले से इतना इतराती है
हरी चुनरिया पवन जब उसकी उड़ाती है
गुलाबी बदन की भीगी धूप उड़ाती है
साँझ का घूँघट ओढ़े पनघट उतरती है
गगरिया छलकाती द्वार से निकलती है
सतरंगी छटा जो उसके रूप की बरसती है
मन की मरूस्थली उसके लिए तरसती है
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: ०५ जून २००३
2 replies on “नित उड़ता हूँ तेरी कजरारी अँखियों में”
साँवले का मन लुभाके, बिजली गिराके
राधा चली कहाँ ऐसे गगरी सँभाले
radha shyam par ye geet ati sundar
tareef ka shukriaya