आरज़ू तुम पे मर मिटने की
आज तक दिल में ज़िन्दा है
मगर तुम हो कि तुम्हें
मेरे प्यार की क़दर ही नहीं
एक दिया जल रहा है शबो-रोज़
बे-तरह और बेहविस …
दर्द भरे हुए, ज़ख़्म फूँकते हुए
तुम्हें उसकी गर्मी का एहसास ही नहीं
तेरी तलाश में भटक रहा हूँ
खुष्क… सूखी तेज़ हवाओं में
मुझे आँखें बंद करनी ही पड़ती हैं
दर्द की धूल आँखों से बहती ही नहीं
आरज़ू तुम पे मर मिटने की
आज तक दिल में ज़िन्दा है…
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’