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मेरी नज़्म

ज़िन्दगी के हर्फ़ बदल गये हैं

आइने रातभर रोते रहे
तस्वीरें रातभर जागती रहीं
लम्हे उम्रभर सिसकते रहे
ख़ामोशियाँ उम्रभर ख़ाक फाँकती रहीं

यादें धूप में सूख रही हैं
बातें सब मुरझा गयी हैं
आँखों में दरार पड़ रही है
सपने बंजर हो गये हैं

आँसू बर्फ़ बन गये हैं
ख़ाहिशें तिनके चुन रही हैं
आरज़ू के पाँव थक चुके हैं
ख़्याल ज़मीन में दफ़्न हो गये हैं

साँसें सीने में भीग गयी हैं
उदास सावन टपक रहा है
जंगल तन्हाई में सुलगता है
फूल पलकें झुकाये हुए हैं

ख़ुशबू बे-सदा गल रही है
पलाश के फूल हँस रहे हैं
जड़ें मिट्टी सोख रही हैं
पत्ते सूखी बेलों ने डस लिये हैं

उजाले पत्थरों में जज़्ब हो गये हैं
चाँद धुँध हो रहा है
रात रेत हो गयी है
सितारे रेत के दरया में बह रहे हैं

दर्द तेज़ाब हो गया है
और खु़शी मग़रूर रहती है
मैं शब्द उगलता रहता हूँ
ज़िन्दगी के हर्फ़ बदल गये हैं


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

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मेरी नज़्म

मगर बीते हुए दिन मुझे आज भी ढ़ूँढते हैं…

नामालूम वह दिन मैंने
जन्नत में गुज़ारे या जहन्नुम में
मगर बीते हुए दिन
मुझे आज भी ढ़ूँढते हैं

वह ताने जो लोगों ने मुझे दिये
वह कशिश जिसने मुझे खेंचा
वह जिससे यह देखा ना गया
जाने किसका मन साफ़ था इनमें

मगर बीते हुए दिन
मुझे आज भी ढ़ूँढते हैं…

गोया इक चुभन दिल में हो
दमाग़ फिर कहीं भटक जाता है
आसूँ टूटते हैं बुझते हैं बनते हैं
मगर टीस दबती नहीं किसी तह में

नामालूम वह दिन मैंने
जन्नत में गुज़ारे या जहन्नुम में…

इंतज़ार कोई नहीं करता किसी का
बहते रहते हैं सब नदियों की तरह
या बाँधों की तरह मन बाँध दिया जाता है
कभी दौलत में कभी मरासिम में

मगर बीते हुए दिन
मुझे आज भी ढ़ूँढते हैं…


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

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मेरी नज़्म

सब चेहरे एक-से हो जाते हैं…

यह कौन-सा मुक़ाम है?
जहाँ आकर सब चेहरे एक-से हो जाते हैं
दिल रेत बनकर सीने में
गहरा और गहरा धँसने लगता है
धड़कनें गु़मशुदा हो जाती हैं
साँस-साँस हर नस फटने लगती है
हर बात अपनी हर बात
पत्थरों से टकराकर सुनायी देती है
आवाज़ें मानूस जानी-पहचानी
सर पर पत्थरों की तरह चोट करती हैं
मिलने वाले आते हैं
बैठते हैं सुनाते हैं चले जाते हैं
मैं जिस ओर भी जाता हूँ
उस राह की उम्र कुछ और बढ़ जाती है

यह कौन-सा मुक़ाम है?
जहाँ आकर सब चेहरे एक-से हो जाते हैं


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’

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'सौदा' का सुखन

अक़्ल उस नादाँ में क्या जो तेरा दीवाना नहीं

अक़्ल उस नादाँ में क्या जो तेरा दीवाना नहीं
नूर१ पर तेरे मगस२ है वो जो परवाना नहीं

अपनी तौबा ज़ाहिदा जुज़ हर्फ़े-रिन्दाना नहीं३
ख़ुम४ हो यहाँ तो एहतियाजे-जामो-पैमाना५ नहीं

ख़ाले-ज़ेरे-ज़ुल्फ६ पर जी मत जला ऐ मुर्ग़े-दिल७
मान मेरा भी कहा ये दाम८ बे-दाना नहीं

अपने काबे की बुज़ुर्गी९ शैख़ जो चाहे सो कर
अज-रु-ए-तारीख़१० तो बेश-अज-सनमख़ाना११ नहीं

गर है गोशे-फ़ह्मे-आलम१२ वरना यूँ कहता है चुग़्द१३
थी न आबादी जहाँ ऐसा तो वीराना नहीं

बे-तजल्ली१४ तूर की किससे ये दिल गर्मी करे
जल बुझे हर शमा पर अपनी वो परवाना नहीं

हाय किस साक़ी ने पटका इस तरह मीना-ए-दिल१५
हो जहाँ रेज़ा१६ न उसका कोई मैख़ाना नहीं

सुनके नासिह का सुख़न१७ मजनूँ ने ‘सौदा’ यूँ कहा
ऐसे अहमक़ से मुख़ातिब हूँ मैं दीवाना नहीं

१.प्रकाश २.मक्खी ३.शराबी शब्द के सिवा कुछ और नहीं
४.शराब का घड़ा ५.जान और पैमाने की आवश्यकता
६.ज़ुल्फ़ के नीचे की त्वचा ७.दिल रूपी पक्षी ८.जाल
९.बड़ाई १०.इतिहास के आधार पर ११.बुतख़ाने से अधिक
(तात्पर्य यह है कि मुह्म्मद से पहले तक काबा भी एक
बुतख़ाना ही था) १२.दुनिया की समझ की बात सुनने वाला
कान १३.उल्लू १४.आलोक के बिना १५.दिल रूपी सुराही
१६.टुकड़ा १७.नसीहत करने वाले का वचन

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'सौदा' का सुखन

किसी का दर्दे-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे

किसी का दर्दे-दिल प्यारे तुम्हारा नाज़ क्या समझे
जो गुज़रे सैद१ के दिल पर उसे शहबाज़२ क्या समझे

रिहा करना हमें सैयाद३ अब पामाल करना है
फड़कना भी जिसे भूला हो सो परवाज़४ क्या समझे

न पूछो मुझसे मेरा हाल टुक५ दुनिया में जीने दो
खुदा जाने मैं क्या बोलूँ कोई ग़म्माज़६ क्या समझे

कहा चाहे था तुझसे मैं लेकिन दिल धड़कता है
कि मेरी बात के ढब को तू ऐ तन्नाज़७ क्या समझे

जो गुज़री रात मेरे पर किसे मालूम है तुझ बिन
दिले-परवाना का जुज़-शमा८ कोई राज़ क्या समझे

न पढ़ियो ये ग़ज़ल ‘सौदा’ तू हरगिज़ ‘मीर’ के आगे
वो इन तर्ज़ों से क्या वाक़िफ़ वो ये अंदाज़ क्या समझे

Word Meaning:
१.शिकार २.शाही बाज़ ३.शिकारी ४.उड़ान ५.ज़रा-सा ६.चुग़लख़ोर ७.व्यंग्य करने वाला ८.शमा के अलावा