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मेरा गीत

पहला-पहला नशा

जादू जैसा छाया पहला-पहला नशा
जी में आये पंख खोल उड़ जाऊँ मैं
आस्माँ से आगे निकल जाऊँ मैं

मस्ती दिल पर छायी अनजानी-सी
उड़ती फिरे है जैसे फूलों पर तितली
दिल में जाने कैसा तूफ़ान उठा है
यूँ लगता है हर पल मुझसे रूठा है

तेरा ग़म पाया ख़ुशी मुझको मिली
लगता है खिल रही दिल की कली
जादू जैसा छाया पहला-पहला नशा

तेरे ख़ाब आते रहे मुझको रातभर
मैं कहाँ जाऊँगा दूर तुमसे बिछड़कर
अफ़साना बन चुका खो गया दिल
इल्तिजा सुन ले मुझसे आकर मिल

यह जादू प्यार है मैंने अब जाना
जिसको ढूँढ़ रहा था वह मुझे मिला
जादू जैसा छाया पहला-पहला नशा


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: १९९८-१९९९

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

5 replies on “पहला-पहला नशा”

जादू जैसा छाया पहला-पहला नशा
जी में आये पंख खोल उड़ जाऊँ मैं
आस्माँ से आगे निकल जाऊँ मैं

सुन्दर पंक्तियाँ…

bhairu, full poetry quoting is not allowed. just convey msg. your IP is 59.95.185.177. I can block it… if I found you try to spam weblog.

ख़ुदा बचाये तुझे इश्क़ की लहरों से
कहते हैं दरिया में तूफ़ान उठा करता है

दिल की दुनिया में तेरे आने का ग़म है
होके बहुत नाराज़ मेरा मेहमान उठा करता है

प्रीतीश बारहठ, आपका अंदाज़े-बयाँ अच्छा लगा। लेकिन कुछ और मज़ा आता अगर आप अपना चिट्ठा-लिंक देते।

pritishbarahath.blogspot.com

प्रजापति जी नमस्कार!

नया ब्लॉग बनाया है, आपका स्वागत है।

प्रीतीश

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