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मेरी ग़ज़ल

पल भर को सही मेरे ज़ख़्मों को बुझाने के लिए आ

पल भर को सही मेरे ज़ख़्मों को बुझाने के लिए आ
आ तू कभी मुझको मोहब्बत सिखाने के लिए आ

पहले प्यार का रंग दिल पे बहुत गहरा चढ़ा है
तू कभी इस रंग में अपना रंग मिलाने के लिए आ

मेरी तरह तेरे दिल में भी होंगी कुछ बेइख़्तियारियाँ
इस इश्क़ के तूफ़ाँ में तू मुझको डुबाने के लिए आ

जितनी शिद्दत से मैंने तुझको रात-दिन चाहा है
उस तरह तू बाक़ी के दिन-रात महकाने के लिए आ

बे-मौत शबो-रोज़ मरता हूँ मैं तड़प-तड़प कर
तू कभी मुझको ज़िन्दगी के हुस्न दिखाने के लिए आ

मुझको क्या हासिल है तेरे प्यार में सिवाय फ़ुर्क़त
तू यह फ़ु्र्क़त की बद्-रंग शाम मिटाने के लिए आ

मुझमें हर तरह क़हर नाज़िल हैं बद्-नसीबियों के
तू कभी मेरी तक़दीर की शम्अ जलाने के लिए आ

जो तुझको बिना बताये छोड़कर चला गया है ‘नज़र’
उसको क़सम दे, कह कि तू कभी न जाने के लिए आ


शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००४

By Vinay Prajapati

Vinay Prajapati 'Nazar' is a Hindi-Urdu poet who belongs to city of tahzeeb Lucknow. By profession he is a fashion technocrat and alumni of India's premier fashion institute 'NIFT'.

12 replies on “पल भर को सही मेरे ज़ख़्मों को बुझाने के लिए आ”

जी बिल्कुल सही पहचाना आपने, वही ज़मीन है, पर दर्द और हर्फ़ मेरे हैं। शुक्रिया!

वाह बहुत बढीया लीखे हैं। मै तो कवीता लीख ही नही पाता हूं।

एक बार लीखा था उसके बाद से कभी कवीता लीखने का नाम भी नही लीया

धन्यवाद, कुन्नू भाई, अरे आपकी कोई तो कविता पढ़ने को मिले, हमें ज़रूर पढ़वाओ!

nazar sahab mazaa aa gaya… hamare jaise kisi ke pyaar mein doobe huon ke liye to hanumaan chaalesa hai apki rachna… sach mein lajawaab.

cheers!

माद्रिद, स्पेन में तो सबको इश्क़ का नशा है आप भी हनुमान चलीसा पढ़ें, बहुत-बहुत बढ़िया, यानी शुक्रिया!

समीर जी बस उड़नतश्तरी उड़ाते रहिए वाह-वाही की, अपना आशीर्वाद बनाये रखिए! शुक्रिया!

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