पलाश का फूल हूँ
ज़िन्दगी है
ख़ुशबू से जुदा
कभी मैं जुदा
कभी तुम जुदा
और ज़िन्दगी क्या?
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
पलाश का फूल हूँ
ज़िन्दगी है
ख़ुशबू से जुदा
कभी मैं जुदा
कभी तुम जुदा
और ज़िन्दगी क्या?
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २०००-२००१
One reply on “पलाश का फूल हूँ”
palash ke phool mein bhi lal rang hota hai,mohobaat ka.