फिर चाँदनी रात है
ज़ाहिर-सी बात है
थोड़ा-सा दर्द होगा ही
कुछ तुमको कुछ हमको
इसका एहसास होगा ही
समझाना मुश्किल है
समझना उससे कहीं
कहते सभी यहाँ पर
सुनता कोई नहीं…
है आरज़ू यह
जो चढ़ती है
शाख़ों से लिपटकर
होता है यूँ कभी
रह जाती यह
दिल में सिमटकर
फिर चाँदनी रात है
ज़ाहिर-सी बात है
थोड़ा-सा दर्द होगा ही
यादों को कुरेदना
वक़्त को खुरेंचना
ख़ाब कभी जो आयें
अश्कों से सींचना
थोड़ा-थोड़ा तन्हा
थोड़ा-थोड़ा ख़ुद के
साथ जीना…
लम्बे-से वक़्त की
छोटी-सी ज़िन्दगी के
पैग पीना…
इतना सहके दिल को
थोड़ा-सा दर्द होगा ही
कुछ तुमको कुछ हमको
इसका एहसास होगा ही
शायिर: विनय प्रजापति ‘नज़र’
लेखन वर्ष: २००१-२००२
One reply on “फिर चाँदनी रात है”
sundar,pir chandani raat hai,iska ehsas thoda tumhe thoda hume phir hoga,thoda thoda tanha thoda khud ke saath jina,wala para bahut sahi ban pada hai.